स्वतंत्रता संग्राम की वीरांगना
रानी दुर्गावती
गढ़मण्डल के जंगलों में उस समय एक शेर का आतंक छाया हुआ था । शेर कई जानवरों को मार चुका था । रानी कुछ सैनिकों को लेकर शेर को मारने निकाल पड़ी । रास्ते में उन्होंने सैनिकों से कहा, शेर को मई ही मारूँगी । शेर को ढूँढने में सुबह से शाम हो गई । अंत में एक झाड़ी में शेर दिखाई दिया रानी ने एक ही वार में शेर को मार दिया सैनिक रानी के अनुक निशाने को देखकर आश्चर्य चकित रह गए ।
यह वीर महिला गोंडवाना के राजा दलपतिशाह की पत्नी रानी दुर्गावती थी ।
दुर्गावती का जन्म सन 1524 महोबा में हुआ था दुर्गावती के पिता महोबा के राजा थे दुर्गावती को बचपन से ही वीरतापूर्ण एवं साहस भारी कहानियाँ सुनना व पढ़ना अच्छा लगता था ।पढ़ाई के साथ साथ दुर्गावती ने घोड़े पर चढ़ना, तीर तलवार चलाना, अच्छी तरह सीख लिया था पिता के साथ वे शासन का कार्य भी देखती थी ।
विवाह योग्य अवस्था प्राप्त करने पर उनके पिता ने राजपुताने के राजकुमारों में से योग्य वर की तलाश की परंतु दुर्गावती गोंडवाना के राजा दलपति शाह की वीरता पर मुग्ध थी दुर्गावती के पिता अपनी पुत्री का विवाह दलपति शाह से नहीं करना चाहते थे । अंत में दलपति शाह और महोबा के राजा का युद्ध हुआ जिसमे दलपति शाह विजयी हुए इस प्रकार दुर्गावती और दलपति का विवाह हुआ ।
दुर्गावती अपने पति साथ गढ़मण्डल में सुखपूर्वक रहने लगी । इसी बीच दुर्गावती के पिता की मृत्यु हो गई और महोबा तथा कलिंजर पर मुगल सम्राट अकबर का अधिकार हो गया ।
विवाह के एक वर्ष के पश्चात दुर्गावती के एक पुत्र हुआ जिसका नाम वीर नारायण रखा गया । जिस समय वीर नारायण केवल तीन वर्ष का था दुर्गावती के पति दलपति शाह की मृत्य हो गई । दुर्गावती के ऊपर तो मानो दुखों का पहाड़ ही टूट पड़ा । परंतु उन्होंने बड़े धैर्य और साहस के साथ दुख को सहन किया दलपति शाह की मृत्यु के बाद उनका पुत्र वीर नारायण गद्दी पर बैठा । रानी दुर्गावती उसकी संरक्षिका बनी और राज – काज स्वयं देखने लगी ।
वे सदैव प्रजा के सुख दुख का ध्यान रखती थी चतुर एवं बुद्धिमान मंत्री आधार सिंह की सलाह और सहायता से दुर्गावती ने अपने राज्यों की सीमा बढ़ा ली । राज्य के साथ साथ उन्होंने सुसज्जित स्थायी सेन भी बनाई और अपनी वीरता उदारता चतुराई से राजनैतिक एकता स्थापित की ।
गोंडवाना राज्य शक्तिशाली तथा सम्पन्न राज्यों में गिना जाने लगा । इससे दुर्गावती की ख्याति फैल गई।
दुर्गावती की योग्यता एवं वीरता की प्रशंसा अकबर ने सुनी । उसके दरबारियों ने उसे गोंडवाना को अपने अधीन कर लेने की सलाह दी लेकिन अकबर ने ऐसा करना उचित नहीं समझा क्योंकि वह रानी दुर्गावती की वीरता को पहचानता था वह जनता था की यदि मैंने युद्ध झेड़ा तो इसका एक ही अंजाम होगा वह है मौत
लेकिन अधिकारियों के बार बार परामर्श देने पर अकबर तैयार हो गया लेकिन वह खुद युद्ध मे नहीं गया क्योंकि वह भलीभती रानी दुर्गावती की वीरता से परिचित हो गया था आसफ खाँ नामक सरदार को गोंडवाना के गढ़मण्डल पर चढ़ाई करने की आज्ञा दी ।
आसफ खाँ ने समझा कि दुर्गावती महिला है अकबर के प्रताप से भयभीत होकर आत्म समर्पण कर देंगी परंतु रानी दुर्गावती को अपनी योग्यता साधन और सैन्य शक्ति पर इतना विश्वास था कि अकबर की सेन से भी कोई भय और डर नहीं था । रानी दुर्गावती के मंत्री ने आसफ खाँ की सेना और सज्जा को देखकर युद्ध न करने की सलाह दी । परंतु रानी ने कहा , “कलंकित जीवन जीने की अपेक्षा सम्मानपूर्वक मर जाना अच्छा है । आसफ खाँ जैसे साधारण सूबेदार के सामने झुकना लज्जा की बात है रानी सैनिक के वेश मे घोड़े पर सवार होकर निकाल पड़ी । रानी को सैनिक वेश मे देखकर आसफ खाँ के होश उड़ गए । रणक्षेत्र मे रानी और उनके सैनिक उत्साहित होकर शत्रुयों पर टूट पड़े ।
देखते ही देखते शत्रुओ की सेन मैदान छोड़कर भाग निकली । आसफ खाँ बड़ी कठिनाई से अपने प्राण बचाने मे सफल हुआ ।
आसफ खाँ की बुरी तरह हार सुनकर अकबर बहुत लज्जित हुए । कुछ वर्षों बाद उन्होंने पुनः आसफ खाँ को गढ़मण्डल पर आक्रमण करने भेजा रानी तथा आसफ खाँ की सेना के बीच घमासान युद्ध हुआ तोपों का वार होने पर भी रानी ने हिमन नहीं हारी , रानी हाथी पर सवार होकर सेन का संचालन कर रही थी उन्होंने मुगल तोपचियों का सिर काट डाला । यह देखकर आसफ खाँ की सेना फिर भाग खड़ी हुई दो बार हार कर आसफ खाँ और ग्लानि से भर गया । वह भी रानी के वीरता से भलीभती परिचित हो गया और समझ गया की इन देश वासियों को सामने से हराना मुश्किल नहीं न मुमकिन हैं
रानी दुर्गावती अपनी राजधानी में विजयोंत्सव मना रही थी । उसी समय गढ़मण्डल के एक सरदार ने रानी को धोखा दे दिया । उसने गढ़मण्डल का सारा भेद आसफ खाँ को बता दिया । आसफ खाँ मे अपनी हर का बदला लेने के लिए तीसरी बार गढ़मण्डल पर आक्रमण किया । रानी ने अपने पुत्र के नेतृव में सेना भेजरक स्वयं एक टुकड़ी का नेतृव संभला ।
दुश्मनों के छक्के छूटने लगे । वीरता की कोई पहचान नहीं होती भले ही रानी के पास सेना काम थी लेकिन बहुत खतरनाक थी । उसी बीच रानी ने देखा की उनका पंद्रह वर्षीय पुत्र घायल होकर घोड़े से गिर गया हैं लेकिन रानी विचलित न हुई । उनकी सेना के कुछ वीरों ने वीर नारायण को सुरक्षित स्थान पर पहुंचा दिया और रानी से प्रार्थना की कि वे अपने पुत्र का अंतिम दर्शन कर लें ।
लेकिन रानी ने उत्तर दिया —- “यह समय पुत्र से मिलने का नहीं है मुझे खुशी है कि मेरे वीर पुत्र ने युद्ध भूमि मे वीरगति पायी है । अतः मै उससे देवलोक में ही मिलूँगी” ।
वीर पुत्र की स्थिति देखकर रानी दुगुने पराक्रम से तलवार चलाने लगी । दुश्मनों के सिर जमीन पर गिरने लगे । तभी दुश्मनों का एक बाण रानी की आँख में जा लगा, दूसरा तीर रानी के गर्दन मे लगा रानी समझ गई की अब मृत्यु निश्चित है यह सोचकर की जीते जी दुश्मनों की पकड़ में न आऊ उन्होंने अपनी ही तलवार अपनी छाती में भोंक ली और अपने प्राणों की बलि दे दी ।
रानी दुर्गावती ने लगभग 16 वर्षों तक संरक्षिका के रूप मे शासन किया । भारत के इतिहास में रानी दुर्गावती और चाँदबीबी ही ऐसे वीर महिला थी जिन्होंने अकबर की शक्तिशाली सेन का सामना किया तथा मुगलों के राज्य विस्तार को रोका । अकबर ने अपने शासन काल मे बहुत सी लड़ाइयाँ लड़ी किन्तु ग़ढ़मण्डल के युद्ध ने मुगल सम्राट के दाँत खट्टे कर दिए ।
रानी दुर्गावती में अनेक गुण थे । वीर और साहसी होने के साथ ही वे त्याग और ममता की मूर्ति थी । राजघराने में रहते हुए भी उन्होंने बहुत सादा जीवन व्यतीत किया । राज्य के कार्य देखने के बाद वे अपना समय पूजा पाठ और धार्मिक कार्यों मे व्यतीत करती थी ।
भारतीय नारी की वीरता तथा बलिदान की यह घटना सदैव अमर रहेगी
- आपको क्या लगता है अगर रानी दुर्गावती के सरदार ने रानी को धोखा नहीं दिया होता तो अकबर की सेन तीसरी बार भी जीत पाती
रानी दुर्गावती से जुड़ी अन्य बाते जो हमे सिख दे जाती है —
- रानी दुर्गावती एक आध्यात्मिक साहसी और आत्मसम्मान से भारी वीर महिला थी उनके पति और पिता के मृत्यु के बाद भी उन्होंने अपने क्षेत्रों को सुरक्षित और समृद्ध बनाए रखा ।
- मुगलों के आक्रमण से वे कभी भयभीत न हुई बल्कि कंधों से कंधा मिलाकर आखिरी साँस तक सामना की ।
- उनके द्वारा किए गए वीरता पूर्ण कार्य हमे बहुत से सिख दे जाती हैं ‘
- परिस्थितियाँ चाहे कितनी भी कठिन क्यों न हो रानी दुर्गावती के जैसे साहस दिखाना चाहिए और कभी भी आत्मसम्मान और मूल्यों से समझौता नहीं करना चाहिए ।
- रानी जी ने यह साबित कर दिया है कि एक महिला भी महान योद्धा, प्रशासक और नेतृत्वकर्ता बन सकती हैं ।