रानी लक्ष्मीबाई
“भारतीय इतिहास में ऐसी अनेक वीर महिलाएँ हुई हैं, जिन्होंने बहादुरी तथा साहस के साथ युद्ध भूमि में शत्रु से लोहा लिया । इनमे झांसी की रानी लक्ष्मीबाई का नाम प्रमुखता से लिया जाता है ।
रानी वीरता साहस दयालुता अद्वितीय सौन्दर्य का अनुपम संगम थीं । दृढ़ता आत्मविश्वास व देशभक्ति उनके हथियार थे जिससे अंग्रेजों को मात खानी पड़ी”।
लक्ष्मीबाई को बचपन में सब प्यार से मनु बुलाते थे मनु की आयु चार पाँच वर्ष की थी कि उनकी माँ का देहांत हो गया । मनु के पिता पुणे के पेशवा बाजीराव के दरबार में थे । मनु की देख भाल के लिए उनके पिता उन्हे अपने साथ पेशवा बाजीराव के दरबार में ले जाते थे । अतः मनु का बचपन पेशवा बाजीराव के पुत्रों के साथ बीता । मनु उन्ही के साथ पढ़ती थी । पेशवा बाजीराव के बच्चों को अस्त्र शस्त्र चलाने की शिक्षा दी जाती थी । उन बच्चों को देखकर मनु की भी शस्त्र – विद्या मे रुचि उत्पन्न हुई । मनु ने बहुत लगन से तीर तलवार चलाना, बंदूक चलाना और घुड़सवारी करना सीखा ।
घुड़सवारी, तीर तलवार चलाना मनु के प्रिय खेल थे । वे इसमे इतनी निपुण हो गई कि लोग इस नन्हीं बाला को देखकर आश्चर्य करते थे । वे स्वभाव से बहुत चंचल थी इसी कारण सब प्यार से उन्हे छबीली भी कहते थे । मनु का साहस और कौशल देखकर नाना घोंडुं और तात्या टोपे भी आश्चर्य चकित रह जाते ।
मनु का विवाह झांसी के महाराज गंगाधर राव के साथ हुआ । विवाह के बाद उन्हें नाम दिया गया – रानी लक्ष्मीबाई । रानी लक्ष्मीबाई ने किले के अंदर ही व्यायामशाला बनवायी और शस्त्र चलाने तथा घोड़े की सवारी का अभ्यास करने की व्यवस्था की । घोड़े की पहचान में वे बहुत निपुण मानी जाती थी ।
एक बार रानी के पास एक सौदागर घोड़े बेचने आया । उन घोड़ों में दो घोड़े एक जैसे दिखते थे रानी ने उसमें से एक घोड़े का दाम एक हजार रुपये तथा दूसरे का दाम पचास रुपये लगाया । सौदागर ने कहा – महारानी दोनों घोड़े एक जैसे हैं फिर यह फर्क क्यों ??
रानी ने उत्तर दिया एक घोड़ा उन्नत किस्म का है जबकि दूसरे की छाती मे चोट हैं।
रानी लक्ष्मीबाई नारी मे अबला नहीं सबला का रूप देखती थी उन्होंने स्त्री सेन का गठन किया जिसमे एक से बढ़कर एक वीर साहसी स्त्रियाँ थी रानी ने उन्हे घुड़सवारी व शस्त्र चलाने का प्रशिक्षण दिलाकर युद्ध कला में निपुण बनाया ।
रानी के जीवन में बहुत से उतार चढ़ाव आए । रानी को एक पुत्र उत्पन्न हुआ परंतु यह आनंद अल्पकाल तक ही रहा । कुछ महीने बाद ही शिशु की मृत्यु हो गई । जब राजा गंगाधर राव गंभीर रूप से बीमार हुए तो दुर्भाग्य के बादल और भी घने हो गए । उनके जीवित बचने की कोई आशा नहीं थी दरबार के लोगों की सलाह पर उन्होंने अपने परिवार के पाँच वर्षीय बालक को गोद लेकर दत्तक पुत्र बना लिया । बालक का नाम दामोदर राव रखा गया । बालक को गोद मे लेने के दूसरे दिन ही राजा की मृत्यु हो गई । रानी पर दुखों का पहाड़ टूट गया । लेकिन वह अपना साहस नहीं खोई,
इस विपत्ति के समय झांसी राज्य को कमजोर जानकर अंग्रेजों ने अपनी कूटनीतिक चाल चली । अंग्रेजों ने रानी को पत्र लिखा कि राजा के कोई पुत्र न होने के कारण झाँसी पर अब अंग्रेजों का अधिकार होगा । इस सूचना पर रानी तिलमिला उठी । उन्होंने घोषणा की कि झाँसी का स्वतंत्र अस्तित्व है । स्वामिभक्त प्रजा ने भी उनके स्वर में स्वर मिल कर कहा हम अपनी झाँसी नहीं देंगे । अंग्रेजों ने झाँसी पर चढ़ाई कर दी । रानी ने भी युद्ध की पूरी तैयारी की । उन्होंने किले की दीवारों पर तोपें लगा दी । रानी की कुशल रणनीति और किलेबंदी देखकर अंग्रेजों ने दांतों तले अँगुलिया दबा ली । अंग्रेज सेना ने किले पर चारों ओर से आक्रमण किया दिया । आठ दिन तक घमासान युद्ध हुआ । रानी ने अपने महल के सोने व चाँदी का सामान भी तोप के गोले बनाने के लिए दे दिया ।
रानी ने संकल्प लिया की अंतिम साँस तक झाँसी के किले पर फिरंगियों का झंडा नहीं फहराने देंगी । लेकिन सेना के एक सरदार ने गद्दारी की और अंग्रेजी सेना के लिए किले का दक्षिण द्वार खोल दिया । अंग्रेजी सेना किले में घुस आयी । झाँसी के वीर सैनिक ने अपने रानी के नेतृव मे दृढ़ता से शत्रु का सामना किया । शत्रु की सेना ने झाँसी की सेना को घेर लिया किले के मुख्यद्वार के रक्षक सरदार खुदा बख्श और तोपखाने के अधिकारी सरदार गुलाम गौस खाँ वीरतापूर्वक लड़ते हुए वीरगति को प्राप्त हुए ।
ऐसे समय में रानी को उसके विश्वासपात्र सरदारों ने कलपी जाने की सलाह दी । रानी अपनी सेना को छोड़कर नहीं जाना चाहती थी लेकिन उनके सेनानियों ने उनसे अनुरोध करते हुए कहा महारानी आप हमारी शक्ति है ।
आपका जीवित रहना हमारे लिए बहुत जरूरी है यदि आपको कुछ हो गया तो अंग्रेज सेन झाँसी पर अधिकार कर लेगी । समय की गंभीरता को देखते हुए अपने राज्य की भलाई के लिए रानी लड़ाई छोड़ने के लिए राजी हो गई । उन्हे वहाँ से सुरक्षित निकालने के लिए एक योजना बनाई गई इस योजना में झलकारी बाई ने प्रमुख भूमिका निभाई थी ।
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