बछेंद्री पाल
शेरपा तेनजिंग द्वारा एवरेस्ट विजय के ठीक “इकत्तीस वर्ष बाद एक बार फिर भारतीयों ने एवरेस्ट विजय का इतिहास रचा । यह अवसर था किसी भारतीय महिला द्वारा एवरेस्ट शिखर पर पहुँचने का । 23 मई, सन 1984 का दिन सम्पूर्ण भारत एवं विशेषकर नारी जगत के लिए गौरव और सम्मान का दिन था । इसी दिन प्रथम भारतीय महिला बछेंद्री पाल ने एवरेस्ट की चोटी पर कदम रखा ।
उत्तर काशी ( उत्तराखंड ) के नाकुरी गाँव में 24 मई 1954 को जन्मी बछेंद्री पाल ने साहस और दृढ़ निश्चय का परिचय देते हुए एवरेस्ट शिखर तक पहुँचने में सफलता प्राप्त की । इन्हें बचपन से ही पर्वत बहुत आकर्षित करते थे । जब ये एम. ए. की पढ़ाई कर रही थी उनके मन में पर्वतराज हिमालय की सबसे ऊँची चोटी एवरेस्ट पर विजय प्राप्त करने की इच्छा बलवती हुई ।
अपने इस स्वप्न को पूरा करने के उद्देश्य से इन्होंने नेहरू पर्वतारोहण संस्थान से पर्वतारोहण का प्रशिक्षण प्राप्त किया । इन्होंने बड़ी लगन, मेहनत से पर्वतारोहण के गुर सीखे और कुशलता प्राप्त की । एवरेस्ट यात्रा से पूर्व इन्होंने नेहरू पर्वतारोहण संस्थान द्वारा आयोजित प्री – एवरेस्ट कैम्प – कम अभियान (एक्सीपिडीशन) मे भाग लिया ।
आखिरकार 23 मई सन 1984 ईस्वी को वह शुभ दिन आ गया जिसका स्वप्न पाल ने बचपन से देखा था । अपने लक्ष्य को पाने के लिए कठिन परिश्रम से प्रशिक्षण प्राप्त किया था । उन्होंने पर्वत विजय करके यह सिद्ध कर दिया कि महिलाएं किसी क्षेत्र में पुरुषों से पीछे नहीं हैं । उनमें साहस और धैर्य की कमी नहीं हैं, यानि महिलाएं ठान ले तो कठिन लक्ष्य भी प्राप्त कर सकती है ।
एवरेस्ट विजय अभियान में बछेंद्री पाल को अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा । यह साहसिक अभियान बहुत जोखिम भरा था । इसमे कितना जोखिम था इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है की अंतिम चढ़ाई के दौरान उन्हे साढ़े छः घंटे तक लगातार चढ़ाई करनी पढ़ी । इनकी कठिनाई तब और बढ़ गई जब इनके एक साथी के पाँव में चोट लग गई ।
इनकी गति मंद पड़ गई थी तब ये पूरी तरह से आगे नहीं बढ़ सकती थी, फिर भी ये हर कठिनाई का साहस और धैर्य से मुकाबला करते हुए आगे बढ़ती रहीं । अंततः 23 मई, सन 1984 को दोपहर एक बजकर सात मिनट पर वे एवरेस्ट के शिखर पर थीं ।
इन्होंने विश्व के उच्चतम शिखर को जीतने वाली सर्वप्रथम पर्वतारोही भारतीय महिला बनने का अभूतपूर्व गौरव प्राप्त कर लिया था ।
एक प्रेसवार्ता में जब सुश्री बछेंद्री पाल से यह पूछा गया कि “एवरेस्ट पर पहुंचकर आपको कैसा लगा ?”
इन्होंने उत्तर दिया – “मुझे लगा मेरा एक सपना साकार हो गया । “
एवरेस्ट विजय के पहले सुश्री बछेंद्री पाल एक महाविद्यालय में शिक्षिका थीं । लेकिन एवरेस्ट की सफलता के बाद भारत की एक आयरन एंड स्टील कंपनी ने इन्हे खेल सहायक की नौकरी की पेशकश की । इन्होंने इस आशा के साथ यह प्रस्ताव स्वीकार किया की यह कंपनी इन्हे और अधिक पर्वत शिखरों पर विजय पाने के प्रयास में सहायता सुविधा तथा प्रेरणा प्रदान करती रहेगी । इस समय सुश्री बछेंद्री पाल टाटा स्टील एडवेंचर फाउंडेशन नामक संस्था मे नई पीढ़ी के पर्वतारोहियों को प्रशिक्षण देने का कार्य कर रही है
महिलाओं द्वारा पर्वतारोहण का सिलसिला सुश्री बछेंद्री पाल के बाद रुका नहीं । उनसे प्रेरणा पाकर हरियाणा के इंदोतिब्बत (भारत – तिब्बत ) पुलिस बल के अधिकारी पद पर कार्यरत सुश्री संतोष यादव ने सन 1992 ईस्वी और 1993 ईस्वी मे लगातार दो बार एवरेस्ट की सफल चढ़ाई की ।