अष्टांग योग

अष्टांग योग (महर्षि पतंजलि)

 

शुरुवात —- 

आपने बाबा रामदेव के हर प्रॉडवत पर पतंजलि नाम तो जरूर ही देखा होगा, क्या आप जानते है पतंजलि कौन थे जिनके नाम पर प्रॉडएक्ट बेचे जा रहे है ।

 

कौन थे महर्षि पतंजलि ? 

भारत,  जो पवित्रता और अध्यात्म की भूमि है इसी भूमि ने महान ऋषियों – बाल्मीकि, वेदव्यास, पतंजलि, महर्षि चरक  । । ।   महान विचारक – भगवान गौतम बुद्ध, महावीर स्वामी

महान संत – कबीर, गुरु नानक, गोस्वामी तुलसीदास, आदि शंकराचार्य, रामानुजाचार्य इत्यादि नाम के स्तंभ है जो इस देश की शोभा और इतिहास है ।

 

“मै कितनी भी कोशिश कर लू, ये किस्सा रह जाएगा आधा । ।

मै किस किस के नाम गिनाऊ, साँसे काम है लोग है ज्यादा” । ।

 

महर्षि पतंजलि प्राचीन भारत के महान ऋषि थे, इन्होंने संस्कृत मे कई ग्रंथों मे से एक प्रमुख ग्रंथ अष्टांग योग है । नाम से स्पष्ट है आठ अंग होंगे इसके ।

योग – मन का अपने स्रोतों से मिल जाना योग है । योग का मूल उद्देश होता है की आत्मा को उसके स्रोतों ( परमात्मा या शुद्ध चेतना ) से मिलना है ।

या हम यह भी कह सकते है जी जब मन सांसारिक जगत से हटकर मूल चेतना तक जा पहुचता है तो  वही सच्चा योग होता है ।

अष्टांग योग के 8 अंग

  1. यम

  2. नियम

  3. आसान

  4. प्राणायाम

  5. प्रत्याहार

  6. धारणा

  7. ध्यान

  8. समाधि

  • ये महर्षि पतंजलि के योग सूत्र मे बताये गए 8 व्यापक चरण हैं । अगर हम इनका पालन करे तो कोई भी मानसिक या शारीरिक बीमारी हमे छु भी नही सकती । इन चरणों को पालन करने से जीवन बदलाव की गति मे जाता है ।

 

 

यम    ( सामाजिक अनुशासन )

यम का अर्थ है दूसरों के साथ कैसा व्यवहार या बातचीत करनी चाहिए । आजकल रिशों मे बहुत झगड़े होते है। यम के 5 चरण आपको इन रिश्तों को आसान बनाने मे मदद करेंगे ।

यम के 5 चरण —-

  1. अहिंसा
  2. सत्य
  3. अस्तेय
  4. ब्रह्मचर्य
  5. अपरिग्रह

    

 

अहिंसा

हम सभी जानते हैं कि अहिंसा का अर्थ दूसरों के प्रति हिंसा न करना है। हमे हमेशा हिंसा न करने के लिए कहा गया है और सभ्य नागरिक होने के नाते हमने हमेशा इसका पालन करने की कोशिश की है, लेकिन क्या हमने वास्तव मे इसके बारे मे गहराई से सोचा है?

 क्या हम केवल दूसरों के प्रति ही हिंसक है ? या अपने प्रति भी हिंसक है ।

चलिए इसे एक कहानी के माध्यम से समझते है –

  • एक बार एक छोड़ सा गाव था, उस गाव के बाहर एक बहुत बढ़ा और शक्तिशाली सांप रहता था जो पूरे गाव वालों को परेशान करके रखता था ।
  • एक बार उस गाव मे साधु घूमता हुआ है गाव वालों ने उस साधु को अपने परेशानी के बारे मे बताया, साधु ने निश्चय किया की मै उस सांप से बात कर के देखता हु।
  • उन्होंने सांप से बात की, और उससे कहा की तुमको अपनी ये हिंसा बंद करनी चाहिए, नही तो तुम कभी विकसित नही हो पाओगे । सांप से साधु की बात मानी और अपने आप को बदल लिया ।
  • कुछ समय के बाद साधु फिर से उसी गाव मे आया, और उस सांप को देखा, जो अब काभी कमजोर और पतला हो गया था और एक चट्टान के पीछे डर के छिपा हुआ था। साधु ने पूछा “तुमको क्या हो गया ?”
  • सांप ने बताया की मैंने आपकी बात मानी और हिंसा करना छोड़ दिया। लेकिन गाव वालों ने मेरा उपहास करना शुरू कर दिया और मुझे पत्थर मारना शुरू कर दिया इसलिए मैंने शिकार करना छोड़ दिया और पत्थर के पीछे छुप गया ।
  • साधु काफी निराश हुए और उन्होंने सांप से कहा मैंने तुमसे कहा था की हिंसा मत करना लेकिन ये तो नही कहा था तुम फुफकारना छोड़ दो ।

सीख– 

भले ही अहिंसा दूसरों के प्रति हमे हिंसा करने से रोकता है लेकिन इसका मतलब यह नही है की हमे खुद पर होने वाली हिंसा को सहन करना चाहिए या स्वयं अपने ऊपर हिंसा करनी चाहिए ।

यदि  हम गहराई से सोचें तो हम दूसरों  की तुलना मे स्वयं पर अधिक हिंसा कर रहे है । स्वयं के प्रति हिंसा के दो प्रकार है :

हम प्रतिदिन अपने मन और शरीर पर इतनी हिंसा कर रहे है,

 

 

 

सत्य

अष्टांग योग  मे जब हम सत्य के बारे मे सीखते है तब उसका अर्थ है की हम अपने सत्य को बोलना और जीना सीखते है ।

क्योंकि सत्य सबके लिए भिन्न हो सकता है जो मेरे लिए सच है वह आपके लिए सच नही हो सकता है ।

योगसूत्र हमे अपना सत्य खोजना सीखते है –

विचार                             शब्द                                कार्य

जब हमारे  विचार शब्द और कार्य मे एकरूपता नही होती तब हमारे भीतर अशान्ति पैदा होती है ।

योग सूत्र हमे बताते है –योग चित्त वृत्त निरोध , अर्थात मन के विकारों खत्म करना ही योग है । जब हम झूठ बोलते है तब हम अशान्ति पैदा करते है ।

इसलिए जब हमारे विचार, शब्द और कार्य एक समान नही होते है, तो हम झूठ महसूस करते है । अपना सत्य खोजने के लिए हमे पहले अपने सबसे महत्वपूर्ण मूल्यों को खोजना होगा ।  हमे अपने शब्दों और कार्यों को अपने विचारों के साथ संरेखित करने की आवश्यकता होगी ।

सच बोलने का मतलब यह नही है कि हम आसंवेदनशील हो जाए, दूसरों के साथ कठोर व्यवहार करें ।

जब आप अपने मन की बात कर रहे हो तो Think का प्रयोग करें

T ————     क्या ये सत्य है ( Truth ) है ?

H ————    या ये उपयोगी (Helpful ) है ?

I ————–   क्या ये प्रेरणादायक ( Inspiring ) है ?

N ————-   क्या ये आवश्यक ( Necessary ) है ?

K ————-   क्या ये सौम्य (Kind ) है ?

दोस्तों सच बोलने में हमारा लक्ष्य कम से कम नुकसान पहुचना होनी चाहिए । अगर सच बोलने से दर्द या कष्ट होगा तो चुप रहना ही बेहतर है ।

 

अस्तेय

  • अस्तेय का अर्थ है कि चोरी न करना ।
  • आप सोच रहें होंगे, जाहीर है मै चोर नहीं हूँ । मई जाकर कुछ भी चोरी नहीं करता । लेकिन अस्तेय को सूक्ष्म स्तर पर समझना होगा ।

अस्तेय का गहरा अर्थ 

जो freely नहीं दिया गया है उसे न लेना ।

वह नहीं लेना जो हमने अर्जित नहीं किया है और जिसके योग्य हम नहीं है ।

उदाहरण – विचारों की चोरी – रचनात्मक की चोरी –  एक सहकर्मी ने एक विचार साझा किया लेकिन आपने इसे अपने विचार के रूप मे प्रस्तुत किया ।

उदाहरण 2 बातचीत में हवी होकर किसी के बोलने का अधिकार छीनना – दूसरों पर हवी होने की कोशिश करना और किसी और को बोलने नहीं देना ।

उदाहरण 3 प्रकृति से चुराकर अपने पास आवश्यकता से अधिक रखना – हम केवल वे 5 जोड़ी कपड़े ही पहनेगें लेकिन फिर भी हमारी अलमारियाँ भरी हुई हैं ।

हम आवश्यकता से अधिक क्यों लेते हैं 

हमेशा अधिक चाहने का मूल कारण यह सोचने से आता है, मै उतना अच्छा नहीं हूँ और मेरे पास पर्याप्त नहीं है

जैसे ही हमे जीवन मे अभाव का एहसास होता है इच्छा, चाहत और लालच उभर आते है । हम उस शून्य को भरने के लिए कुछ खोजना शुरू करते है – वह खाली अनुभूति – और अक्सर ऐसा महसूस होता है की हर किसी के पास वही है जो हम चाहते है । और जो दूसरे के पास है उसके लिए हम इतना तरसते है की हम चोरी करना शुरू कर देते है ।

 अस्तेय का अभ्यास करने से हमें एहसास होता है की हम पहले से ही काफी अच्छे है और हमारे पास पर्याप्त है । 

हमारे वेद हमसे कहते है 

ब्रह्मांड आपके भीतर है , अहं भ्रमस्मि 

  • आप देखेंगे की जिन लोगों को यह एहसास हो गया है की उनके अंदर ही सब कुछ है वे सबसे अधिक आनंदप्रिय प्रसन्नचित्त मिलनसार और आनंदित रहते है ।

दैनिक जीवन मे अस्तेय का अभ्यास कैसे करें ?

  • हम सभी को प्रचुरता का अभ्यास करना चाहिए । अपने मन को कम चाहत रखने और जो हमारे पास पहले से है उसका अधिक आनंद लेने के लिए प्रशिक्षित करें । जब भी हम खालीपन महसूस कर या छोटे महसूस करें तो बस इन मंत्र का जाप करें – मै ही काफी हूं ।

ब्रह्मचर्य 

ब्रह्मचर्य दो शब्दों से मिलकर से बना है – ब्रह्म और चर्या । 

ब्रह्म का अर्थ है उच्चतम चेतना या हमारी उच्चतम क्षमता ।

और चर्या का अर्थ है वहा तक पहुचने का रस्ता ।

उच्चतम चेतना तक पहुचने का एक मार्ग है संयम का मार्ग । अति या जीवन के उतार चढ़ाव में न रहकर माध्यम मार्ग का अनुसरण करना ।

वर्तमान में हम कब कब अति मे जीते है –

जैसे घंटों सोशल मीडिया से जुड़े रहना, आवश्यकता से अधिक काम करना, भोजन करते समय अचेत रहना, अधिक एक्सरसाइज करना , ये कुछ उदाहरण है जब हम चीजों को चरम सीमा पर कर रहे होते है ।

इन सब से हम अपनी ऊर्जा बर्बाद करते है

हम उस ऊर्जा को बचाकर क्या कर सकते है

हम दोस्तों और परिवार के साथ गहरे संबंध बना सकते है अपनी आध्यात्मिक अभ्यासों पर ध्यान दे सकते है दूसरों की सेवा कर सकते है ।

अपरिग्रह 

अपरिग्रह का अर्थ है – अर्जित न करना ।

आवश्यकता से अधिक न होना । केवल वही रखे जिसके हमे वास्तव मे आवश्यकता है । हमारे घरों मे, हमारे शरीर मे, हमारे रिश्तों में, हमारी आलमारियों में ।

अगर हम कुछ घंटों के लिए भी खाली गिलास पकड़े तो हमारा हाथ दर्द करने लगेगा । उसी तरह जब हम अतीत की बातों को पकड़कर रखते है । उस व्यक्ति ने ऐसा किया था । मेरा जीवन बहुत बुरा था । मै बहुत आघात से गुजरा हूँ – । हम थका हुआ और हारा हुआ महसूस करते है ।

जब हम नई चीजे, नए विचार, नई भावना प्राप्त करते है तो हम पुरानी चीजों को भी छोड़ना, चाहिए जो नया है उसे ग्रहण करने के लिए हमारे पास जगह हो ।

जरूरतमंदों को धन और भौतिक संपत्ति देना, क्षमा के माध्यम से शिकायतों को दूर करना और अतीत को जाने देना, हमे हल्का महसूस कराएगा और हमे हमारे जीवन के सही अर्थ को जानने के करीब भी लाएगा ।

 

 इन्हे भी पढे —    

Class 6 History  notes in Hindi 

26 January speech in Hindi 

क्या आप इनके भी बारे मे पढ़ना चाहेंगे जो इतिहास और हर देश भक्त के दिलों मे आज भी विराजमान है –

रानी लक्ष्मीबाई – प्रथम स्वतंत्रता संग्राम की महा नायिका । 

रानी दुर्गावती – मुगलों को 2 बार युद्ध मे लोहा लेने वाली महानायिका । 

तात्या टोपे – 1857 की क्रांति के सबसे बड़े महानायक, जिनके सामने अंग्रेज भी घुटने टेक दिए थे । 

जगदीश चंद्र बसु – भारतीय वैज्ञानिक, संसाधनों के कमी मे भी खोज करने वाले वैज्ञानिक 

वीर अब्दुल हमीद – पाकिस्तान की टैंक को अकेले उढ़ाने वाले वीर । 

 

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